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श्री श्री रविशंकर जी


श्री श्री रविशंकर जी
गुरू जी की वाणी

भारत के प्रमुख आध्यात्मिक गुरुओं में से एक श्री श्री रविशंकर का मानना है कि उनके बचपन का कभी अंत नहीं होगा, क्योंकि बचपन सदा निष्पक्ष, सौम्य और निश्छल होता है। जीवन का सच्चा आनंद बचपन को बुढ़ापे तक जीने में है। वे कहते हैं आध्यात्मिकता आत्मा से जुड़ी चीज है। इसे कहीं से सीखा नहीं जाता। रविशंकर कहते हैं कि बचपन में जीने का मतलब बच्चों जैसी हरकतें करने से नहीं है, वरन अपना दिल बच्चों के समान निर्मल रखने से है। अर्थात मन में किसी के प्रति दुर्भावना और द्वेष मत रखो। मैं बचपन में बहुत शरारती था और आज भी हूँ। सभी बच्चे शरारती होते हैं, लेकिन आजकल के बच्चे तनाव में ज्यादा नजर आते हैं। अभिभावकों को चाहिए कि बच्चों का तनाव दूर करें और उन्हें स्वाभाविक ढंग से जीवन का आनंद लेने दें। श्री रविशंकर कहते हैं कि व्यक्ति अपने जीवन को बिल्ली-चूहे का खेल न बनाए, उसे उल्लास से जिए।


आसान नहीं है गुरु बनना : आध्यात्मिकता आत्मा से जुड़ी चीज है। इसे कहीं से सीखा नहीं जाता। मैं आध्यात्मिक जीवन को सादगी से जीने में विश्वास रखता हूँ। बाबा रामदेव से मैं मिला हूँ, योग के क्षेत्र में वे भी बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। भारत को अभी और ऐसे लोगों की जरूरत है, जो समाज को सही दिशा दिखा सके।
सुदर्शन क्रिया : हमारे साँस, मन, शरीर और आत्मा सब में एक लय है। लय को एक साथ लाने को ही सुदर्शन क्रिया कहते हैं। इसे प्रायाणाम सीखने के बाद कर सकते हैं। आधा-पौन घंटा करने के बाद दर्शन होने लगता है कि मैं कौन हूँ। ध्यान-समाधि लगने लगती है। दो-चार दिन सीख लें उसके बाद खुद से भी कर सकते हैं। दो दिन प्राणायाम और फिर सुदर्शन क्रिया सिखाते हैं। पूरी दुनिया में इसे सिखाने वाले लोग हैं और जो भी इस काम से जुड़ना चाहते हैं, उनका स्वागत है।
परंपरा : अपनी परंपराओं को छोड़ने की जरूरत नहीं है। यहाँ प्रत्येक परंपरा की अपनी खूबी और सुंदरता है। बस ये देखना पड़ेगा कि परंपरा में कट्टरपंथ के तत्व न आने पाएँ या कहें कि परंपरा का ये दावा न हो कि हम ही सर्वश्रेष्ठ हैं। हमें इससे बचना है। भारत की विरासत को सहेजकर भी रखना है और विशाल दृष्टिकोण भी रखना है।


आर्ट ऑफ़ लिविंग दुर्ग के सोजन्य से

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