
१.सूर्य :-इस ब्रम्हांड में प्रत्यक्ष परमात्मा है जिसे हम खुली आँख से देख सकते है यह उर्जा और प्राणशक्ति केरूप में हमारे नाभिचक्र में स्थित है अज्ञानता के रूप में अंहकार व् ज्ञान के रूप में स्वयं परमात्मा के स्वरुप का प्रतिनिधित्वकरता है इसी आत्मा के साथ एकाकार ही जीवन का परम सत्य है सूर्य के कारण ही जीवन है अतः सूर्य को पितृ कारक ग्रह माना जाता है यही हमारे दांये नेत्र का कारक है
२.चंद्रमा :-शेष कर्मो की इक्षा मन से उत्पन्न होती है जिससे मानव का पुनः जन्म होता है और वो कर्मगति के लिए पुनः बाध्य हो जाता है यह मन रूपी चंद्रमाँ से ही उत्पन्न होता है,चंद्रमा से ही शरीर का निर्धारण होता हैं ,अतः यह माता कारक ग्रह माना गया है यह बाये नेत्र का भी कारक ग्रह है
३.मंगल :-मंगल किसी का अमंगल नही कर सकता यह शक्ति का कारक ग्रह है जो काल पुरूष में पुरुषार्थ के रूप में स्थित है भौतिक जीवन में शक्ति केविभिन्न रूप है वो चाहे शारीरिक ,मानसिक भौतिक ,देहिक ,देविक , राजनेतिक या वैज्ञानिक शक्ति यह मंगल ग्रह के प्रभाव से उत्पन्न होते है मंगल पुरुषार्थ के रूप में केवल भौतिक नही बल्कि अध्यात्मिक पूर्णता के लिए भी मार्ग प्रशस्त करता है
४.बुध :-बुध ज्ञान का स्वामी ग्रह है जो हमारे भीतर बौधिक निर्णय का प्रतिनिधित्व करता है ,जो बाहरी सुचानावो को एकत्रित कर इन्द्रियों के माध्यम से शरीर को प्रेषित करता है अच्छे ,बुरे सत ,असत का ज्ञान बुध ग्रह से ही सम्भव है
५.गुरु :-यह हमारी मूलप्रकृति ,सृजनात्मकता ,बौधिक शक्ति का प्रतिक है गुरु के प्रभाव से परम ज्ञान की प्राप्ति होती है हमारे भीतर अध्यात्मिक विकास गुरु ग्रह से ही सम्भव है बाह्य जीवन में गुरु पद प्रतिष्ठा ,मान ,सम्मान ,पुत्र ,पद अधिकार में वृद्धि कराता है यदि हम केवल बाहरी तत्व को आत्मसात करे है तो इसके प्रभाव में न्यूनता स्वतः होने लगता है
६.शुक्र :-प्रेम एवं सौन्दर्य का प्रतिक है मानव जीवन में प्रेम,सौन्दर्य एवं आनंद के रूप में यह विद्यमान है भौतिक सुख क्षणिक एवं नाशवान है यह स्त्रीकारक ग्रह है जो दांपत्य जीवन का भी प्रतिनिधित्व करता है केवल सांसारिक कामानावो से वशीभूत होने पर शुक्र ग्रह के विपरीत परिणाम सामने होते है जहाँ पाप अधर्म का सृजन होने लगता है
७.शनि :-यह क्रिया शक्ति का प्रतीक है इस लिए इसे कर्म के देवता कहा जाता है शनि वास्तव में त्याग और तपस्या का ग्रह है यह जीवन में अंहकार ,काम, एवं लोभ पर नियंत्रण कर के जीवन को वास्तविकता प्रदान करता है
८.राहू :-यह भ्रम का कारक ग्रह है यह हमारे भीतर अपूर्ण इच्छावो के रूप में अवचेतन मन में स्थिर रहता है साधना ,सिद्धियों एवं गूढ़ विधावो के माध्यम से राहू स्वयं परमात्मा से साक्षात्कार कराता है
९.केतु :-यह भय एवं भ्रम कारक है यही मनुष्य जीवन के अंध अंहकार को नष्ट करता है और "मोक्ष "प्रदान करता है इस लिए इसे मोक्ष कारक ग्रह कहा जाता है
इस तरह ९ ग्रह मानव जीवन को प्रभावित करते है अतः हमारे आन्तरिक संसार बाहर व्याप्त संसार से भिन्न नही है हमारा ज्योतिषशास्त्र इसी अन्तर को स्पष्ट कराता है ।
२.चंद्रमा :-शेष कर्मो की इक्षा मन से उत्पन्न होती है जिससे मानव का पुनः जन्म होता है और वो कर्मगति के लिए पुनः बाध्य हो जाता है यह मन रूपी चंद्रमाँ से ही उत्पन्न होता है,चंद्रमा से ही शरीर का निर्धारण होता हैं ,अतः यह माता कारक ग्रह माना गया है यह बाये नेत्र का भी कारक ग्रह है
३.मंगल :-मंगल किसी का अमंगल नही कर सकता यह शक्ति का कारक ग्रह है जो काल पुरूष में पुरुषार्थ के रूप में स्थित है भौतिक जीवन में शक्ति केविभिन्न रूप है वो चाहे शारीरिक ,मानसिक भौतिक ,देहिक ,देविक , राजनेतिक या वैज्ञानिक शक्ति यह मंगल ग्रह के प्रभाव से उत्पन्न होते है मंगल पुरुषार्थ के रूप में केवल भौतिक नही बल्कि अध्यात्मिक पूर्णता के लिए भी मार्ग प्रशस्त करता है
४.बुध :-बुध ज्ञान का स्वामी ग्रह है जो हमारे भीतर बौधिक निर्णय का प्रतिनिधित्व करता है ,जो बाहरी सुचानावो को एकत्रित कर इन्द्रियों के माध्यम से शरीर को प्रेषित करता है अच्छे ,बुरे सत ,असत का ज्ञान बुध ग्रह से ही सम्भव है
५.गुरु :-यह हमारी मूलप्रकृति ,सृजनात्मकता ,बौधिक शक्ति का प्रतिक है गुरु के प्रभाव से परम ज्ञान की प्राप्ति होती है हमारे भीतर अध्यात्मिक विकास गुरु ग्रह से ही सम्भव है बाह्य जीवन में गुरु पद प्रतिष्ठा ,मान ,सम्मान ,पुत्र ,पद अधिकार में वृद्धि कराता है यदि हम केवल बाहरी तत्व को आत्मसात करे है तो इसके प्रभाव में न्यूनता स्वतः होने लगता है
६.शुक्र :-प्रेम एवं सौन्दर्य का प्रतिक है मानव जीवन में प्रेम,सौन्दर्य एवं आनंद के रूप में यह विद्यमान है भौतिक सुख क्षणिक एवं नाशवान है यह स्त्रीकारक ग्रह है जो दांपत्य जीवन का भी प्रतिनिधित्व करता है केवल सांसारिक कामानावो से वशीभूत होने पर शुक्र ग्रह के विपरीत परिणाम सामने होते है जहाँ पाप अधर्म का सृजन होने लगता है
७.शनि :-यह क्रिया शक्ति का प्रतीक है इस लिए इसे कर्म के देवता कहा जाता है शनि वास्तव में त्याग और तपस्या का ग्रह है यह जीवन में अंहकार ,काम, एवं लोभ पर नियंत्रण कर के जीवन को वास्तविकता प्रदान करता है
८.राहू :-यह भ्रम का कारक ग्रह है यह हमारे भीतर अपूर्ण इच्छावो के रूप में अवचेतन मन में स्थिर रहता है साधना ,सिद्धियों एवं गूढ़ विधावो के माध्यम से राहू स्वयं परमात्मा से साक्षात्कार कराता है
९.केतु :-यह भय एवं भ्रम कारक है यही मनुष्य जीवन के अंध अंहकार को नष्ट करता है और "मोक्ष "प्रदान करता है इस लिए इसे मोक्ष कारक ग्रह कहा जाता है
इस तरह ९ ग्रह मानव जीवन को प्रभावित करते है अतः हमारे आन्तरिक संसार बाहर व्याप्त संसार से भिन्न नही है हमारा ज्योतिषशास्त्र इसी अन्तर को स्पष्ट कराता है ।
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