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दुराचार पर विजय का पर्व है गुड़ीपड़वा


दुराचार पर विजय का पर्व है गुड़ीपड़वा

कटुता, दुगरुणों, दुष्कर्मो और बुरे अनुभवों से स्वयं को मुक्त कर मधुरता, सद्गुणों, अच्छे कर्मो और प्रेम के भाव को अपनाकर स्वयं को जीतने के संदेश के साथ चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा का दिन गुड़ी पड़वा के रुप में देश के कई भागों में मनाया जाता है। विशेष रुप से महाराष्ट्र में यह त्यौहार बड़े उत्साह से मनाया जाता है। वर्ष के शुभ मुहूर्तो में गुड़ी पड़वा का दिन बहुत महत्व का है।

गुड़ी का अर्थ होता है विजय पताका। इस संबंध में ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान श्रीराम ने वाली को मारा था। वाली के त्रास से मुक्त हुई प्रजा ने घर-घर में उत्सव मनाकर पताका (ग़ुड़ियां) फहराई। अत: उनके विजय के उपलक्ष्य में गुड़ी लगाने की परंपरा बनी। आज भी घर के आंगन में ग़ुड़ी खड़ी करने की प्रथा महाराष्ट्र में प्रचलित है। इसीलिए इस दिन को गुड़ीपडवा नाम दिया गया। इस प्रकार यह पर्व दुष्प्रवृत्तियों, भौतिक सुखों और भोग पर संयम और योग की विजय का पर्व है।

एक अन्य कथा के अनुसार शालिवाहन नामक एक कुम्हार के लड़के ने मिट्टी के सैनिकों की सेना बनाई और उस पर पानी छिड़ककर उनमें जान डालकर इस सेना की मदद से शक्तिशाली शत्रुओं को पराजित किया। इस विजय के प्रतीक के रूप में शालिवाहन शक संवत का प्रारंभ हुआ। इस कथा में मिट्टी के सैनिकों में प्राण डालने के रुप में प्रतीकात्मक संदेश है कि उस समय मानसिक जड़ता और शारीरिक रुप से कर्महीनता के कारण शत्रुओं के आक्रमण से भयभीत लोगों में विश्वास और उनकी आत्म शक्ति को जगाना, जो आज के समाज के लिए भी एक प्रेरणा है।

सौजन्य -भास्कर

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