Sunday

श्री श्री रविशंकर जी


गुरु‌र्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु: गुरुर्देवो महेश्वर:

संसार में दुर्लभ हैं सद्गुरु

सद्गुरु की महिमा गाते-गाते शास्त्रकार थकते नहीं। मनीषियोंने निरंतर यही कहा है कि आध्यात्मिक प्रगति के लिए सद्गुरु की सहायता आवश्यक है। शिष्य के अज्ञान रूपी अंधकार को दूर करके गुरु उसमें सद्ज्ञान रूपी प्रकाश भर देता है। इसलिए वह गुरु के रूप में वंदनीय-अभिनंदनीय हो जाता है। सद्गुरु की महिमा सर्वसाधारण को अनुभव कराई जा सके, इस उद्देश्य से गुरु पूर्णिमा पर्व का बडा महत्व है।

शास्त्र कहते हैं-अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशलाकया।चक्षुरुन्मीलितंयेन तस्मैश्री गुरवेनम:॥

गुरु गीता में कहा गया है गुकारअंधकार का वाचक है और रुकारतेज का-प्रकाश का।

इस प्रकार गुरु ही अज्ञान का नाश करने वाले ब्रह्म हैं, इसमें तनिक भी संशय नहीं। इसीलिए गुरु-चरण सर्वश्रेष्ठ है, यह देवों के लिए भी दुर्लभ हैं।

श्री श्री रविशंकर जी
गुरू जी की वाणी

भारत के प्रमुख आध्यात्मिक गुरुओं में से एक श्री श्री रविशंकर का मानना है कि उनके बचपन का कभी अंत नहीं होगा, क्योंकि बचपन सदा निष्पक्ष, सौम्य और निश्छल होता है। जीवन का सच्चा आनंद बचपन को बुढ़ापे तक जीने में है। वे कहते हैं आध्यात्मिकता आत्मा से जुड़ी चीज है। इसे कहीं से सीखा नहीं जाता। रविशंकर कहते हैं कि बचपन में जीने का मतलब बच्चों जैसी हरकतें करने से नहीं है, वरन अपना दिल बच्चों के समान निर्मल रखने से है। अर्थात मन में किसी के प्रति दुर्भावना और द्वेष मत रखो। मैं बचपन में बहुत शरारती था और आज भी हूँ। सभी बच्चे शरारती होते हैं, लेकिन आजकल के बच्चे तनाव में ज्यादा नजर आते हैं। अभिभावकों को चाहिए कि बच्चों का तनाव दूर करें और उन्हें स्वाभाविक ढंग से जीवन का आनंद लेने दें। श्री रविशंकर कहते हैं कि व्यक्ति अपने जीवन को बिल्ली-चूहे का खेल न बनाए, उसे उल्लास से जिए।



आसान नहीं है गुरु बनना : आध्यात्मिकता आत्मा से जुड़ी चीज है। इसे कहीं से सीखा नहीं जाता। मैं आध्यात्मिक जीवन को सादगी से जीने में विश्वास रखता हूँ। बाबा रामदेव से मैं मिला हूँ, योग के क्षेत्र में वे भी बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। भारत को अभी और ऐसे लोगों की जरूरत है, जो समाज को सही दिशा दिखा सके।
सुदर्शन क्रिया : हमारे साँस, मन, शरीर और आत्मा सब में एक लय है। लय को एक साथ लाने को ही सुदर्शन क्रिया कहते हैं। इसे प्रायाणाम सीखने के बाद कर सकते हैं। आधा-पौन घंटा करने के बाद दर्शन होने लगता है कि मैं कौन हूँ। ध्यान-समाधि लगने लगती है। दो-चार दिन सीख लें उसके बाद खुद से भी कर सकते हैं। दो दिन प्राणायाम और फिर सुदर्शन क्रिया सिखाते हैं। पूरी दुनिया में इसे सिखाने वाले लोग हैं और जो भी इस काम से जुड़ना चाहते हैं, उनका स्वागत है।
परंपरा : अपनी परंपराओं को छोड़ने की जरूरत नहीं है। यहाँ प्रत्येक परंपरा की अपनी खूबी और सुंदरता है। बस ये देखना पड़ेगा कि परंपरा में कट्टरपंथ के तत्व न आने पाएँ या कहें कि परंपरा का ये दावा न हो कि हम ही सर्वश्रेष्ठ हैं। हमें इससे बचना है। भारत की विरासत को सहेजकर भी रखना है और विशाल दृष्टिकोण भी रखना है।

No comments:

Post a Comment