Wednesday

गणपति बाप्पा मोरया


सार्वजनिक गणेश उत्सव दस दिन का होता है। लेकिन अपने अपने घरों में लोग डेढ़ दिन, पाँच दिन या फिर सात दिन बाद भी विसर्जन करते हैं। श्री महागणपति, षोडश स्त्रोत माला में आराधकों के लिए गणपति के सोलह मूर्त स्वरूप बताए गए हैं, जो भिन्न-भिन्न कार्यो के साधक हैं।

बाल गणपति :
ये चतुर्भुज गणपति हैं। इनके चारों हाथों में केला, आम, कटहल, ईख तथा सूँड में मोदक होता है। यह गणपति प्रतिमा अरुण वर्णीय लाल आभायुक्त होती हैं। नि:संतान दंपति इनकी आराधना से संतान सुख प्राप्त करते हैं, ऐसी शास्त्रीय मान्यता हैं।

तरूण गणपति :
यह गणपति की अष्टभूजी प्रतिमा हैं। उनके हाथों में पाश, अंकुश, कपित्थ फल, जामुन, टूटा हुआ हाथी दाँत, धान की बाली तथा ईख आदि होते हैं। इनकी भी हल्की लाल आभा होती हैं। युवक-युवतियाँ अपने शीघ्र विवाह की कामना के लिए इनकी आराधना करते हैं।

ऊर्ध्व गणपति :
इस गणपति विग्रह की आठ भुजाएँ हैं। देह का वर्ण स्वर्णिम हैं। हाथों में नीलोत्पल, कुसुम, धान की बाली, कमल, ईख, धनुष, बाण, हाथी दांत और गदायुध हैं। इनके दाहिनी ओर हरे रंग से सुशोभित देवी भी हैं। जो भी व्यक्ति त्रिकाल संध्याओं में इन गणपति विग्रहों में से किसी की भी भक्तिपूर्वक उपासना करता है, वह अपने शुभ प्रयत्नों में सर्वदा विजयी रहता है।

भक्त गणपति :
गणपति की इस प्रतिमा के चार हाथ हैं, जिनमें नारियल, आम, केला व खीर के कलश सुशोभित होते हैं। इस गणपति प्रतिमा का वर्ण पतझड़ की पूर्णिमा के समान उज्ज्वल श्वेत होता है। इष्ट प्राप्ति की कामना से इनकी आराधना की जाती है।

वीर गणपति :
यह प्रतिमा सोलह भुजाओं वाली होती हैं। इनकी छवि क्रोधमय तथा भयावनी हैं। शत्रुनाश एवं संरक्षण के उद्देश्य से की गई इनकी आराधना तत्काल लाभ पहुँचाती है।

शक्ति गणपति :
इस प्रतिमा की बाँई ओर सुललित ऋषि देवी विराजमान होती है, जिनकी देह का रंग हरा हैं। संध्याकाल की अरूणिमा के समान धूमिल वर्ण वाले इन गणपति के दो ही भुजाएँ हैं। सुख, समृद्धि, भरपूर कृषि व अन्य शांति कार्यों के लिए इनका पूजन अत्यंत शुभ माना जाता है।

हेरंब विघ्नेश्वर :
बारह भुजाओं से युक्त हेरंब गणपति की प्रतिमा का दाहिना हाथ अभय मुद्रा व बायां हाथ वरद मुदा्र प्रदर्शित करता है। सिंह पर सवार हेरंब गणपति के पाँच मुख हैं। इनके देह का वर्ण श्वेत है। संकटमोचन तथा विघ्ननाश के लिए अत्यंत प्रसिद्ध हैं।

लक्ष्मी गणपति :
गणपति की इस प्रतिमा के दोनों पार्श्वों में रिद्धि-सिद्धि नामक दो देवियां विराजमान होती हैं। इनके आठ हाथों में तोता, अनार, कमल, मणिजड़ित कलश, पाश, अंकुश, कल्पलता और खड्ग शोभित हैं। देवियों के हाथों में नील कुमुद होते हैं। सुख, समृद्धि की कामना पूर्ण करने के लिए लक्ष्मी गणपति अति प्रसिद्ध हैं।

महागणपति :
द्वादश बाहु वाले महागणपति अत्यंत सुंदर, गजबदन, भाल पर चंद्र कलाधारी, तेजस्वी, तीन नेत्रों से युक्त तथा कमल पुष्प हाथ में लिए क्रीड़ा करती देवी को गोद में उठाए अत्यंत प्रसन्न मुद्रा में अधिष्ठित हैं। इनकी देह का वर्ण सुहावनी लालिमा से युक्त हैं। अन्न-धन, सुख-विलास व कीर्ति प्रदान करने वाला महागणपति का यह स्वरूप भक्तों की कामना पूर्ति के लिए प्रसिद्ध हैं।

विजय गणपति :
अरुण वर्णी सूर्य कांति से युक्त तथा चार भुजाओं वाले विजय गणपति की यह प्रतिमा अपने हाथों में पाश, अंकुश, हाथी दांत तथा आम फल लिए हुए हैं। मूषक पर आरूढ़ यह विजय गणपति प्रतिमा कल्पवृक्ष के नीचे विराजमान हैं। अपने किसी भी मंगल प्रयास में विजय की कामना से विजय गणपति की आराधना की जाती हैं।

विघ्नराज या भुवनेश गणपति :
स्वर्णिम शरीर व बारह भुजाओं से युक्त यह गणपति प्रतिमा अपने हाथों में क्रमश: शंख, पुष्प, ईख, धनुष, बाण, कुल्हाड़ी, पाश, अंकुश, चक्र, हाथी दाँत, धान की बाली तथा फूलों की लड़ी लिए रहती हैं। इनका पूजन किसी भी शुभ कार्य के प्रारंभ में करना अत्यंत लाभदायक होता है।

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